Last modified on 16 मई 2014, at 22:44

कंचन मंदिर ऊँचे बनाई के / रसखान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कंचन मंदिर ऊँचे बनाई के
मानिक लाइ सदा झलकेयत।
प्रात ही ते सगरी नगरी।
नाग-मोतिन ही की तुलानि तलेयत।
जद्यपि दीन प्रजान प्रजापति की
प्रभुता मधवा ललचेयत।
ऐसी भए तो कहा रसखानि जो
सँवारे गवार सों नेह न लेयत।