Last modified on 22 मई 2014, at 22:48

है हरितें हरिनाम बड़ेरो / गदाधर भट्ट

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 22 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गदाधर भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

है हरितें हरिनाम बड़ेरो ताकों मूढ़ करत कत झेरो॥१॥

प्रगट दरस मुचुकुंदहिं दीन्हों, ताहू आयुसु भो तप केरो॥२॥

सुतहित नाम अजामिल लीनों, या भवमें न कियो फिर फेरो॥३॥

पर-अपवाद स्वाद जिय राच्यो, बृथा करत बकवाद घनेरो॥४॥

कौन दसा ह्वै है जु गदाधर, हरि हरि कहत जात कहा तेरो॥५॥