भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके / गदाधर भट्ट
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:02, 22 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गदाधर भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके
तरुनिमनि नित्य नवतन किसोरी।
कृष्णतनु लीन मन रुपकी चातकी
कृष्णमुख हिमकिरिनकी चकोरी॥१॥
कृष्णदृग भृंग बिस्त्रामहित पद्मिनी
कृष्णदृग मृगज बंधन सुडोरी।
कृष्ण-अनुराग मकरंदकी मधुकरी
कृष्ण-गुन-गान रास-सिंधु बोरी॥२॥
बिमुख परचित्त ते चित्त जाको सदा
करत निज नाहकी चित्त चोरी।
प्रकृति यह गदाधर कहत कैसे बनै
अमित महिमा इतै बुद्धि थोरी॥३॥