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प्रत्येक आवाज खटका है / विनोद कुमार शुक्ल
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प्रत्येक आवाज खटका है
बच्चे का माँ! कहकर पुकारना
खत्म होती हरियाली में
बीज से अंकुर का निकलना
खाली मुट्ठी में बंद हवा का छूटकर
जमीन पर गिरना खटका है.
पानी पीना और रोटी चबाना भी.
बचाओ! बचाओ!! चिल्ला सकने वाले लोग
बचाओ भी नहीं चिल्लाते
कोई बचा है
यह पूछने वाला भी नहीं बचेगा
लगता है दुनिया को नष्ट करने का धमाका
अभी शायद हो
हो सकता है जिंदगी को नष्ट करने के धमाके के पहले
जिंदगी का बड़ा धमाका हो