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सत के काम छोड़कै दुनिया / दयाचंद मायना

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सत के काम छोड़कै दुनिया, ऊतपणा के सिर होगी
लुच्चे लोग, कुबध म्हं राजी, साह पुरुषां की मर होगी...टेक

अनरीति और ऊतपणा का, ऊतां नै सिर ठाया रै
व्हिस्की, जीन, रम पीवण का, बहम जगत कै लाया रै
दो चार लुंगाड़े हँस कै बोले, देखो खोपर आया रै
खोपर म्हं भी ना सधी, पक्का टन नाम धराया रै
हे भगवान टेक नीचै धरती तै, जान अधर होगी...

भाई का दुश्मन भाई होग्या, और दूसरा बैरी ना
विषियर म्हं विष हो सै, पर बन्दे कैसा जहरी ना
या दौलत आणी-जाणी, सदा किसे कै ठहरी ना
फेर भी जगत हाफले घालै, नीत ठिकाणै रहरी ना
धर्म ईमान बेचकै खागे, बेईमानी घर-घर होगी...

लुच्चे लोग लुचापण गावै, घट म्हं राम रह्या कोन्या
इज्जत, कायदा, लाज शर्म का, बिल्कुल नाम रह्या कोन्या
संतोष, शान्ति, दया, बिना, सुकर्म का काम रह्या कोन्या
झूठ, कपट, छल, बेईमानी, बिन, कोई बाकी गाम रह्या कोन्या
शर्म ठिकाणै बैठगी, लुच्चां की थाप जबर होगी...

और किसे का कुछ ना बिगड़ै, आपे नै खा सै छोह आपणा
पाप बेल नै पाड़ बगा दे, नर खेत धर्म का बो आपणा
बहती धार ज्ञान गंग म्हं, गात हाथ तै धो आपणा
इस भव सागर पै पार होण का, साफ रास्ता टोह ले आपणा
‘दयाचन्द’ भगवान रट्या कर, इसमैं तेरी गुजर होगी...