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उलझन / श्रीनाथ सिंह

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 कोई मुझको बेटा कहता ,
 कोई कहता बच्चा ।
कोई मुझको मुन्नू कहता ,
  कोई कहता चच्चा ।
 कोई कहता लकड़ा ! मकड़ा!
 कोई कहता लौआ ।
  कोई मुझको चूम प्यार से ,
कहता मेरे लौआ ।
  कल आकर इक औरत बोली ,
   तू है मेरा गहना ।
 रोटी अगर समझती वह तो ,
  मुश्किल होता रहना ।
 सब सहता हूँ पर बढ़ता है ,
  दुःख अन्दर ही अन्दर ।
   गालों पर जब चूम चूम ,
   माँ कहती - मेरे बन्दर ।