भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उलझन / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 26 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोई मुझको बेटा कहता ,
कोई कहता बच्चा ।
कोई मुझको मुन्नू कहता ,
कोई कहता चच्चा ।
कोई कहता लकड़ा ! मकड़ा!
कोई कहता लौआ ।
कोई मुझको चूम प्यार से ,
कहता मेरे लौआ ।
कल आकर इक औरत बोली ,
तू है मेरा गहना ।
रोटी अगर समझती वह तो ,
मुश्किल होता रहना ।
सब सहता हूँ पर बढ़ता है ,
दुःख अन्दर ही अन्दर ।
गालों पर जब चूम चूम ,
माँ कहती - मेरे बन्दर ।