Last modified on 24 फ़रवरी 2016, at 16:23

दुख लगै छै पर्वत रं / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 24 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नन्दलाल यादव 'सारस्वत' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दुख लगै छै पर्वत रं
साँस-साँस पर आफत रं।

कपड़ा आरेा कुल दोनो केॅ
जोगी राखोॅ इज्जत रं।

हुनकोॅ साथ तेॅ हेनोॅ मीट्ठोॅ
खाली मधु के शर्बत रं।

हम्मीं सुधरी जाँव तेॅ अच्छा
लोग दिखै सब बेमत रं।

सारस्वतोॅ के गजल लगै छै
दर्द पीर मेॅ राहत रं।