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खूब मतैलोॅ सावन छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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खूब मतैलोॅ सावन छै
ऐकरोॅ सेॅ ज्यादा वन छै।
ओकरोॅ लेली दुनियो पावन
जेकरोॅ मन ठो पावन छै।
एक तरफ चन्दन के पौधा
एक तरफ मेॅ गेहुअन छै।
जे रं यहाँ बिगड़लोॅ सब छै
सुधरै के की साधन छै?
सारस्वतोॅ के मन अगहन रं
तन भी चंचल खंजन छै।