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अपने लोग पराया लागै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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अपने लोग पराया लागै
यही सेॅ दुनियाँ माया लागै।

गाछ-विरिछ सब कटलोॅ जाय
धूपे रं ई छाया लागै।

तोरोॅ वास मनोॅ मेॅ होथैं
चन्दन रं ई काया लागै।

सच्चा मित्र मिलै जों, ऊ तेॅ
घर के छत के पाया लागै।

आखिर कीचड़ मेॅ फँसनै छै
जों कंचन में काया लागै।