Last modified on 7 मार्च 2016, at 12:02

नबी की स्तुति / रस प्रबोध / रसलीन

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 7 मार्च 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=रस प्रबोध /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नबी की स्तुति

लहि न परत तेहि गुन कह्यै बरनि सकत है कौन।
याते नामुहि सुमिरि कै चित गहि रहिए मौन॥5॥
अति पवित्र रसना करौ मेघन जल ते धोइ।
तऊ नबी गुन कथन के जोग न कबहूँ होइ॥6॥
जिनके पावन ते भई पावन भूमि बनाइ।
तिनको सुमिरन जो करैं सो पावन ह्वै जाइ॥7॥
नबी हुते जग मूल पुनि पीछे प्रकटे सोइ।
ज्यौं तरु उपजत बीज तें अंत बीज फिरि होइ॥8॥
जाको गहि सुरलोक जग चल्यौ नरक पथ छोरि।
ऐसी बाँधि नबी दई सत्य धर्म की डोरि॥9॥
सहस जीभ लहि सेस लौं सब जग बरनै आइ।
तऊ नबी की नेकऊ किय अस्तुति नहिं जाइ॥10॥
तिन संतनि के पगन पै धरौ सदा सिर नाइ।
पुनि तिनके हित कारियन देंहु असीस बनाइ॥11॥