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त्रिभंग मूरति सोहान गे दूती! / भवप्रीतानन्द ओझा
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गोपिनी द्वारा कृष्ण-रूप-वर्णन
त्रिभंग मूरति सोहान गे दूती!
श्यामली सूरति सोहान।
नील कमल-वदन,
भौंआ धनुका जैसन,
नैना सें मारेॅ हियाँ वाण गे दूती!
नील अंगे पीताम्बर,
मेघें बिजुली सुंदर,
बिहुँसी केॅ छीने नारी-प्राण गे दूती!
देखी केॅ रूप-विलास,
नें मिटेॅ आँखी पियास,
भामिनी तेजेॅ अभिमान, गे दूती!
ब्रज-वधू लागी,
वंशी टेरे राती-राती जागी,
भवप्रीताक हरि-पदें ध्यान, गे दूती!