Last modified on 1 जुलाई 2016, at 00:23

अप्रिय आवाज़ें / शरद कोकास

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=हमसे त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अपनी उपलब्धता में दुर्लभ होती हैं कुछ आवाजे़ं
कि हम आवाजें़ नहीं आवाज़ों के बारे में सुनते हैं
मिलती जुलती आवाज़ों पर आरोपित करते हैं उनके बिम्ब

बादलों की गड़गड़ाहट सी आवाज़ है यह
एक विमान फट गया है आसमान में
एक रेलगाड़ी छपाक से गिरी है नदी में
बस के तमाम शीशे झनझनाकर टूट गए हैं
कड़कड़ाकर टूट गई है किसी ट्रक के नीचे आकर
काम पर जाते मज़दूर की साईकल

अपने उद्गम से उठती इन आवाज़ों में एक चीख है
जो आवाज़ के रूपक में सुनाई नहीं देती
नींद में पीछा करती है आवाजे़ं
घर से बाहर पांव रखने में डर लगता है
एक छù सुरक्षाचक्र के भीतर
जवान होता है लंबी उम्र का स्वप्न

यकायक अंधेरे में खड़खड़ाकर गिरती है
बूढ़े हो चले पिता की लाठी
झनझनाकर छूटता है रसोई में
बीमार पत्नी के हाथ से कोई बर्तन
बड़ी होती बिट्टो की फ्राक का धागा
चटककर टूटता है
फर्र से फटता है बबलू की नई किताब का पन्ना

बहुत कठिन है अप्रिय आवाज़ों को आत्मसात कर पाना
शोर में डूब जाना भी कोई हल नहीं है
अख़बारों में छपी होती है
एक बेज़बान आदमी के कुचले जाने की खबर
मैं इतने धीरे पन्ना पलटता हूँ
कि अख़बार की आवाज़ तक सुनाई न दे

ख़बर का पुल पार कर जल्द से जल्द
मैं सुरक्षित दुनिया में पहुँच जाना चाहता हूँ।

-2002