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झोपड़े / शरद कोकास

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ऊँची-ऊँची इमारतों के सिर पर
मुकुट की तरह सजा है चाँद

इसी चाँद को देखते हैं हम रोज
अपने छोटे-छोटे घरौंदों से
इसी से बातें करते हैं हम
इसी से अपने दुख-सुख कहते हैं

कल जब मैं कहीं दूर चला जाऊँगा
और हमारी बातें खत्म हो जाएँगी
चाँद फिर उसी तरह उगेगा आसमान में
लेकिन वह कभी नहीं जान सकेगा

कि झोपड़ों में रहने वालों की पहुँच
ऊँची इमारतों तक नहीं होती।

-2009