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माना बे-रंग ज़िन्दगानी है / सिया सचदेव
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माना बे-रंग ज़िन्दगानी है
उम्र हर हाल में बितानी है
कितनी बोझिल उदास शाम है ये
आपकी ही तो मेहरबानी है
इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार
ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है
इस क़दर क्यूँ ग़ुरूर है तुमको
याद रक्खो ये जिस्म फ़ानी है
अपना चैन ओ सुकून खोया है
जब भी इस दिल की मैंने मानी है
आज के दौर में उम्मीद ए वफ़ा
ए सिया तू बड़ी दीवानी है