भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहले अपने दिल को दीवाना कहूँ / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:45, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=फ़िक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले अपने दिल को दीवाना कहूँ
फिर कहीं चाहत का अफसाना कहूँ

बारहा कहता है मुझ से मेरा दिल
मैं तेरी आँखों को मयखाना कहूँ

कब से मेरे दिल में रहता है वोह शख्स
किस ज़बां से उसको अनजाना कहूँ

मुझको सच कहने की आदत है बहुत
क़ातिलों को कैसे दीवाना कहूँ

जाने कब से ख़ुश्क हैं आँखे तेरी
किस तरह मैं इसको मयखाना कहूँ

ज़ेह्ल के जो लोग पैरोकार हैं
चाहते हैं मैं उन्हें दाना कहूँ

उस की मूरत बस गयी दिल में सिया
फिर ना क्यूं इस दिल को बुतखाना कहूँ