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सब्र को अपने यूँ आज़माया करो / सिया सचदेव
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सब्र को अपने यूँ आज़माया करो
शिद्दत-ए-ग़म में भी मुस्कुराया करो
दूरियाँ सब दिलों की मिटाया करो
तुम चराग़-ए-मोहब्बत जलाया करो
धूप शोहरत की दो दिन में ढ़ल जायेगी
ख़ुद को अपनी अना से बचाया करो
हम बुजुर्गों से सुन कर भी समझे नहीं
दीन-ए-हक़ के लिए सर कटाया करो
आईना तुमने देखा नहीं आज तक
उंगुलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
सर की टोपी ज़मीं पर गिरे एकदम
इतना ऊँचा ना सर को उठाया करो