भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर वो मौसम न सुहाने आये / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:44, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=फ़िक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फिर वो मौसम न सुहाने आये
दरमियाँ कितने ज़माने आये
काश टूटे तो किसी तौर जमूद
कोई दीवार गिराने आये
रंज ओ ग़म पर ये तमाशाई मिरे
जश्न मातम का मनाने आये
मेरी ख़ुद्दारी ने मुँह मोड़ लिया
मेरे क़दमों पे ख़ज़ाने आये
घर किराये का है फ़ानी दुनिया
चार ही दिन तो बिताने आये