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ज़ात से अपनी शर्मसार नहीं / सिया सचदेव

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ज़ात से अपनी शर्मसार नहीं
मेरा दामन तो दाग़दार नहीं

रूह पर बोझ ज़िंदगी का है
मौत पर भी तो इख़्तियार नहीं

नफ़्स का हम न कर सके सौदा
ये हमारा तो कारोबार नहीं

देखते हो पलट पलट कर क्यूँ
मेरा चेहरा है इश्तेहार नहीं

लोग गुम है हवस परस्ती में
ख़ून के रिश्तों में भी प्यार नहीं

हाल ए दिल इत्मिनान से कहिये
मुतमइन हूँ मैं बेक़रार नहीं

ख़त्म जब राब्ते सिया सारे
फिर किसी का भी इंतज़ार नहीं