Last modified on 11 जुलाई 2016, at 09:28

आओ शाश्वत / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:28, 11 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आओ शाश्वत ! चलें जंगल में
 
वहाँ पगडंडी पुरानी
आज भी है
उसी पर हम-तुम चलेंगे
मित्र-वृक्षों ने
भरी जो साँस सदियों
वही हम-तुम भी भरेंगे
 
औ' नहायेंगे नदी के शांत जल में
 
वहीं है आदिम गुफा
जिससे निकलते
रात-होते परी-बौने
चकित फिरते हैं
वहीँ पर दोपहर भर
हिरण-छौने
 
अक्स देखेंगे उन्हीं के झील -तल में
 
चाँद-सूरज
वहाँ पर हमको मिलेंगे
साफ-सच्चे
और शाश्वत
वहीँ रहते हैं वनैले
भील-बच्चे
 
खोजते जो रात-भर भौंरे कँवल में