भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज अन्त्यज है / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:51, 11 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भाई, मानें
यही आखिरी सूरज है
इसके बाद
अँधेरे होंगे घर-घर में
ढल जायेंगे सारे रितु-पल
पत्थर में
धूप आज की
बस कुछ क्षण का अचरज है
कल जो पीढ़ी आएगी
अंधी होगी
एक अँधेरी घाटी में
बंदी होगी
भाई, अभी भी
देखें, सूरज अन्त्यज है
दूर देश के अँधियारे
अच्छे लगते
सुंदर लगते हैं जुगनू
जलते-बुझते
अगले युग का
सूरज इनका वंशज है