Last modified on 22 जुलाई 2016, at 01:53

मंगलाचरण / रस प्रबोध / रसलीन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 22 जुलाई 2016 का अवतरण (Sharda suman ने मंगलाचरण / भाग 1 / रसलीन पर पुनर्निर्देश छोड़े बिना उसे मंगलाचरण / रस प्रबोध / रसलीन पर स्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

॥श्री गणेशाय नमः॥

मंगलाचरण

अलह नाम छबि देत यौं अंथन के सिर आइ।
ज्यों राजन के मुकुट तें अति सोभा सरसाइ॥1॥
अलख अनादि अनंत नित पावन प्रभु करतार।
जग को सिरजनहार अरु दाता सुखद अपार॥2॥
रम्यौ सबनि मैं अरु रह्यौ न्यारो आपु बनाइ।
याते चकित भये सबै लह्यौ न काहू जाइ॥3॥
जब काहू नहिं लहि पर्यौ कीन्हौं कोटि विचार।
तब याही गुन ते धर्‌यौ अलह नाम संसार॥4॥