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नबी की स्तुति / रस प्रबोध / रसलीन
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नबी की स्तुति
लहि न परत तेहि गुन कह्यै बरनि सकत है कौन।
याते नामुहि सुमिरि कै चित गहि रहिए मौन॥5॥
अति पवित्र रसना करौ मेघन जल ते धोइ।
तऊ नबी गुन कथन के जोग न कबहूँ होइ॥6॥
जिनके पावन ते भई पावन भूमि बनाइ।
तिनको सुमिरन जो करैं सो पावन ह्वै जाइ॥7॥
नबी हुते जग मूल पुनि पीछे प्रकटे सोइ।
ज्यौं तरु उपजत बीज तें अंत बीज फिरि होइ॥8॥
जाको गहि सुरलोक जग चल्यौ नरक पथ छोरि।
ऐसी बाँधि नबी दई सत्य धर्म की डोरि॥9॥
सहस जीभ लहि सेस लौं सब जग बरनै आइ।
तऊ नबी की नेकऊ किय अस्तुति नहिं जाइ॥10॥
तिन संतनि के पगन पै धरौ सदा सिर नाइ।
पुनि तिनके हित कारियन देंहु असीस बनाइ॥11॥