नेम-वर्णन / रस प्रबोध / रसलीन
नेम-वर्णन
कामवती अनुरागिनी प्रौढ़ा भेद प्रमानि।
ज्येष्ठ कनिष्ठा हूँ बिषे मानवती जिय जानि॥480॥
तिय अभिलाष दसा भई लालस मती कहाइ।
ताहि वृत्तके मति कहै चुंबन आदि घिनाइ॥481॥
सुकियन मौ धीरादि को बरनि गये प्राचीन।
मान हेत सब तियन मैं ठहरावत परबीन॥482॥
कुलटा छुटि जो भेद सो परतिय कौ सब आइ।
सुकिया हू ये ह्वै सकत त्रिया हास कों पाइ॥483॥
त्यौही परिकीयान मैं है मुग्धादिक कर्म।
ज्यौं परिकीयान मैं है मुग्धादिक कर्म।
ज्यौं विद्या वाँचत सबै है ब्राह्मन को धर्म॥484॥
लोक भेद दिव्यादि है यह जिय मैं अचिरेषु।
इतनी बिधि सब नायिका बरनत बुद्धि विशेषु॥485॥
नायिका भेद-मध्या
॥
पिवेक कथन
सुकियादिकहूँ भेद को कर्म भेद जिय जानु।
मुग्धादिक को चित विषे भेद वहिक्रम मानु॥486॥
अन्य सुरत दुखदादि को अष्ट नायिका संग।
गनत अवस्था भेद मैं जिनकी बुद्धि उतंग॥487॥
उत्तिमादि को बूझिये प्रकृत भेद हिय माँहि।
पदुमिनि आदिक कबित मैं जाति भेद ठहराँहि॥488