सीप के सुभ व बाढ़ो कानन कों चाव यह,
मुकुत से बैन रसलीन जून के लहिए।
दृगन चकोरन को चोंब यह कौहुँ देखो,
चंद सो बदन दुख कदन को चहिए।
अंतर की बिथा न जनाई जात औरन सों,
तोहि हितू जानि सखी बात यह कहिए।
ऐसो ही उपाय कछु दीजिए बताय मोहि
जाते बेग जाइ पिय दोऊ पाय गहिए॥43॥