भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तरुनाई आगम ऋतु बरनन / रसलीन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 23 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आवत बसत तरुनाई तरु तरुनी के,
बात गात अरुनाई दौरत पुनीत है।
बिकसैं सुमन मन सफल उरोज होत
भवन भँवर मन राख रस प्रीत है।
घोरो कंठ भास बास अंग अंग कै सुबास
परम प्रकास कर लेत प्रान जीत है।
रति बीस किये तें न भावैं रसलीन दोऊ
जोबन की रीति सोई जो बन की रीति है॥70॥