Last modified on 16 सितम्बर 2016, at 04:25

अँखियाँ हमारी दई मारी सुधि बुधि हारी / दास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:25, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अँखियाँ हमारी दईमारी सुधि बुधि हारी,
              मोहूँ तें जु न्यारी दास रहै सब काल में
कौन गहै ज्ञाने,काहि सौंपत सयाने,कौन
              लोक ओक जानै,ये नहीं हैं निज हाल में
प्रेम पगि रहीं, महामोह में उमगि रहीं,
              ठीक ठगि रहीं,लगि रहीं बनमाल में
लाज को अंचै कै,कुलधरम पचै कै वृथा,
              बंधन संचै कै भई मगन गोपाल में