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पुण्य करते हुए भी थकते हैं / जहीर कुरैशी
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पुण्य करते हुए भी थकते हैं
जलते—जलते दिये भी थकते हैं
बोलते— बोलते जुबान थकी
गाते—गाते गले भी थकते हैं
हर कदम पर अगर पराजय हो
तो बुलँद हौसले भी थकते हैं
महफिलों, चुटकलों, ठहाकों से
एक दिन, मसखरे भी थकते हैं
चलते—चलते तो थक ही जाते हैं
सोचते—सोचते भी थकते हैं
मंजिलों तक जो ले गए हमको
वे सभी रास्ते भी थकते हैं
अंत में लोग अपने जीवन से
जूझते— जूझते भी थकते हैं.