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खोट सद्भावनाओं में है / जहीर कुरैशी

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खोट सद्भावनाओं में है

कितनी नफरत हवाओं में है


पेड़ से जा लिपटने का दम

प्रेम—पागल लताओं में है


बच रहे हैं जो औलाद से

वो भी ऐसे पिताओं में है


गंध सीमित नहीं फूल तक

गंध चारों दिशाओं में है


व्यक्त होने के पश्चात भी

क्रोध अब तक शिराओं में है


आज तक, मंत्र जैसा असर

मेरी माँ की दुआओं में है


आदमी का तिरस्कार भी

सोची—समझी सजाओं में है