भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारी आपकी यारी से निकले / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी }} [[Cate...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारी —आपकी यारी से निकले

कई रस्ते समझदारी से निकले


बहुत कम थे, जो यूँ ही चल पड़े थे,

सफर पर लोग तैयारी से निकले


उन्हीं फूलों को मिल पाती है इज्जत

जो हिम्मत करके फुलवारी से निकले


अजब थे खेल आतिश—बाजियों के

अगन के पेड़ चिंगारी से निकले


जो स्पर्धाओं में पीछे रह गए थे

वो आगे ही ‘कलाकारी’ से निकले


तुम्हारे इस महल के सामने से

बहुत कम लोग खुद्दारी से निकले


जो सच्चे रंग हैं ‘सद्भावना’ के

सदा होली की पिचकारी से निकले