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कुछ इरादे सफल न हो पाए / जहीर कुरैशी

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कुछ इरादे सफल न हो पाए

झोंपड़ी से महल न हो पाए


पाप के पंक में धँसे ऐसे—

चाहकर भी कमल न हो पाए


ऐसे— ऐसे कठिन सवाल मिले

हल किए किन्तु हल न हो पाए


बंद मुठ्ठी में कैद है जुगनू

कैद मुठ्ठी मे पल न हो पाए


मुस्कुराने में फँस गए इतने—

फूल के बाद फल न हो पाए


हमको पत्थर बना के छोड़ दिया

और पत्थर, तरल न हो पाए


जितने चाहे थे अपने जीवन में

उतने रद्दो—बदल न हो पाए