भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ इरादे सफल न हो पाए / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी }} [[Cate...)
कुछ इरादे सफल न हो पाए
झोंपड़ी से महल न हो पाए
पाप के पंक में धँसे ऐसे—
चाहकर भी कमल न हो पाए
ऐसे— ऐसे कठिन सवाल मिले
हल किए किन्तु हल न हो पाए
बंद मुठ्ठी में कैद है जुगनू
कैद मुठ्ठी मे पल न हो पाए
मुस्कुराने में फँस गए इतने—
फूल के बाद फल न हो पाए
हमको पत्थर बना के छोड़ दिया
और पत्थर, तरल न हो पाए
जितने चाहे थे अपने जीवन में
उतने रद्दो—बदल न हो पाए