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समे जो समुन्दर / हरि दिलगीर

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समे जो समुन्दर,
उन्हीअ ते ही संसार जो शाही बंदर,
जिते ज़िन्दगीअ जा बतेला ऐं ॿेड़ा ऐं ग़ोराब केई,
अचनि ऐं वञनि था।
अजबु रंगु आहे,
अजबु आहि झिरिमिरि!
ही ग़ोराब, ॿेड़ा बतेला त ईं ऐं बेंदा ई रहंदा,
मगर पो (इ) बि बंदर ते झिरिमिरि उहाई,
सदाईं, सदाईं,
सदाईं सा झिरिमिरि!