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सोना सुपना ठहंदा व्या / हरि दिलगीर

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सोना सुपना ठहंदा व्या,
महल पुराणा डहंदा व्या।

सच जी सूरत कंहिं न ॾिठी,
पर्दा चढ़ंदा लहंदा व्या।

जीवन जे सुख माणण लाइ,
सूर सभेई सहंदा व्या।

सूरज खे गम कान पई,
पाछा चढ़ंदा लहंदा व्या।

तिअं तिअं ख़ुशबू ॾींदो व्यो,
जिअं जिअं चंदन गहंदा व्या।

सुर्ति समाधीअ मंझि रही,
सिज उभिरिया ऐं लहंदा व्या।

दरिया छाहे, कीअं कहूं?
कंधीअ वारा कुहंदा व्या।

मस्त टपी प्या मौजुनि में,
आक़िल भिक ते रहंदा व्या।

माण्हुनि जी अचु-वञु जारी,
के के पेरा रहंदा व्या।

धारिया जलंदे रख थी व्या,
यार रुठल जिअं ठहंदा व्या।

मुरिकियो से दिलगीर ॿुधी,
ठाह असां ते ठहंदा व्या।