भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीता अति कृस गात / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:52, 29 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(राग देश)
सीता अति कृञ्स गात, सुमिरत मन रघुबंस-मनि।
आयहु मन इतरात, दसमुख मंदोदरि सहित॥
अधम निलज्ज अपार, कहे बचन निंदित अमित।
सीता दै फटकार, बोली-’चुप रहु नीच ! खल’॥
रावन कर अति क्रञेध, कर अति कठिन कृञ्पान से।
धायहु असुर अबोध, सीतहि मारन मंद-मति॥
मयतनया धरि हाथ, अति बिनीत कहि नीति सुचि।
गई लेइ निज साथ, कोह-मोह-रत रावनहिं॥