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सीता अति कृस गात / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग देश)
सीता अति कृञ्स गात, सुमिरत मन रघुबंस-मनि।
 आयहु मन इतरात, दसमुख मंदोदरि सहित॥
 अधम निलज्ज अपार, कहे बचन निंदित अमित।
 सीता दै फटकार, बोली-’चुप रहु नीच ! खल’॥
 रावन कर अति क्रञेध, कर अति कठिन कृञ्पान से।
 धायहु असुर अबोध, सीतहि मारन मंद-मति॥
 मयतनया धरि हाथ, अति बिनीत कहि नीति सुचि।
 ग‌ई ले‌इ निज साथ, कोह-मोह-रत रावनहिं॥