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जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा-भक्तनुग्रह-कातर ईश।
बने दारुमय रूप अनोखे देते नित मंगल आशीष॥
सागर-तटपर पुरी-धाममें रहे दयामय नित्य विराज।
करते सबका सहज परम हित, सजे विलक्षण मंगल-साज॥