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सिज लथे / मुकेश तिलोकाणी

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मां कीअं चवां
अकेली आहियां
मां कीअं चवां
तूं नाहीं।
छा त, रंगीन ज़िन्दगी आहे
जीआं पई
जीअण ते खिलां बि पई।
सॼे ॾींहं जे
बेज़ारीअ बैदि
सिज लथे
लुडं/दी-लमंदी
अचां तो वटि
तोखां घुरां
तोसां मिलां
तोसां ॻाल्हिायां
नेण ठरी पवनि
दिल बहलाए
वरी साॻी वाट
कौड़ी तन्हाई
वरंदी शाम
तेसिताईं कारी ॿाट
वरी थिए मुलाकाति
सिज लथे।