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ओसीड़ो / मुकेश तिलोकाणी

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तूं र ते
कंधु रखी
भतार जी राह
तकींदी रहिजि।
मधुर, मिठिड़ियुनि रातियुनि
जी निंड
फिटाईंदी रहिजि,
का हासिलाति
का बि खु़शी
हासिलु न थींदइ।
ज़हन खे झंझोड़े
दुख ऐं पीड़ा में
पूरी थींदइ
हीअ हयाती।
हठु, वॾाई छाढु
ॾील खे
ॾारे छॾींदइ।
जीअण चाहीं त
पंहिंजी राह
पाण साफ़ करि।