भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पॻ जो ख़्यालु / मुकेश तिलोकाणी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:45, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुंहिंजी,
पॻ जो, ख़्याल कंदे
बुख मरंदा अबहम।
तुंहिंजी हलति
चाल चलति
वासी वाणी ॿुधी
कंधु धूणींदा ‘हा’,
‘न’ जो नालो न।
जीअंदा जॻ में
लोकल गाॾीअ जियां
चपे चपे बीहंदा,
सहकंदा, कीकूं कंदा
वाका कंदा, दुख सहंदा
पहुचंदा कहिड़े माॻ
ख़बर खु़दा खे!