भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीउ / मुकेश तिलोकाणी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:46, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शाही दुनिया में
मुंहिंजे निगाहुनि हेठां।
खुशनुमा
संसार में
बिना डप
बे हिचक
रोबदार ज़िन्दगीअ जा
लम्हा जीउ।
पहिरो ॾींदडु
आऊं लूमडु
हिफाजत सां
रखंदुसि तुंहिंजो ख़्यालु
बचाउ कंदुसु तुंहिंजो।
तो तां
जान भी घोरी
तूं, जीउ, जीउ ऐं जीउ।