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कसर / मुकेश तिलोकाणी

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अॻे
शीशे जहिड़ियूं
दिलियूं हूंदियूं हुयूं।
अॼु जे
तुंहिंजी दिलि
शीशे जहिड़ी
हुजे हा त
पत्थर हणीं
चूरि-चूरि करे छॾियां हा।
पर अॼु कल्ह
नाॼुक दिलि ते
पत्थर हणण सां
ज़ख़्मु थी पवंदुइ
ऐं लोड़ींदो वतंदें
लोचींदो रहंदें
उन लाइ
सभु कुझु
मुफ़्त में माफु़
भले हुजई कसर।