Last modified on 6 फ़रवरी 2017, at 17:52

पाछी ॿुड़ी / मुकेश तिलोकाणी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मर्ज़ीअ जो मालिकु
जेको करे वेठो
सो सभु ठीकु
बाक़ी सभु ऊन्दहि ऐं कूड़।

ॿिन्हीं पासे बाहियूं
को चारो न
बिनह रस्तो गुम।
नऐं माॻ लाइ
थाॿा ऐं धिका,
मन में विलविला
ज़हन में ज़िलज़िला
छा...
हा...
न...
पाछी ॿुड़ी।