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सूंहं / मुकेश तिलोकाणी
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हिन गीत,
कविता, कहाणीअ मां
कुझु हड़ि, हासिलु न थिए।
सिर्फ
दिलि खे आथत मिले।
मूं जेकी धारियो
सो न पातो
तो ताईं पहुचाइणु चाहियो
तो ॾिठो
या, आ ॾिठो कयो
ख़बर नाहें
मुंहिंजी ख़ामोशी
मुंहिंजी लिखिणी
हरिका लिखिणी ॼणु व्यर्थ।
पुराणा पोथा
लेखा-चोखा
सूंहं हिन संसार जी।