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स्पर्श-राग / योगेंद्र कृष्णा
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हौले से किसी ने
मेरी दुखती रगों पर
अपनी मुलायम हथेलियों का
स्पर्श दिया है
और जैसे पूछा है मेरा नाम
मैं स्वप्न में भी जाग गया हूं
जिस स्पर्श को मैं
सदियों से पहचानता हूं
स्वप्न में ही सही
उसने मेरा नाम क्यों पूछा है...
परेशान-हाल
मैंने जानना चाहा है--
स्वप्न देख रहा आदमी
क्या जाग रहे आदमी से
जुदा होता है...
प्रत्युत्तर में
उतनी ही मुलायम
एक आवाज
प्रतीक्षा में अबतक खुले
मेरे होठों पर
स्पर्श-राग की तरह बजती है--
नहीं
स्वप्न देख रहा आदमी ही
दरअसल
जाग रहे आदमी का
खुदा होता है