भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महानायक / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:10, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आधी रात में नंगे पैर मंदिरों और दरगाहों की ओर
छिप कर जाता हुआ वह काँप रहा है
ग्रह-नक्षत्रों और सितारों के संभावित कोप से
मगर यहाँ गड़ी और गाई जा रही हैं
उसके साहस और शौर्य की पराक्रम-गाथाएँ

सरेआम कितनी सफ़ाई से छिपा रहा है वह
मसीहा के विशाल मुखौटे में अपना लालची चेहरा
मगर यहाँ सुनी और सुनाई जा रही हैं
उसकी महानता और उदारता की किंवदंतियाँ

रंग-बिरंगे काँचों के पीछे
शहर की बसे ऊँची छत पर रच रहा है वह
एक शानदार और मायावी तमाशा
मगर यहाँ देखी और दिखाई जा रही हैं
उसकी अश्रुपूर्ण और भाव-प्रवण करुण-कथाएँ

वह महानायक है इस पाखण्डी समय का

जय-जयकार के शोर के बीच तुम्हारा कुछ भी कहना
बेतुका तो है ही
एक ख़तरनाक गुस्ताख़ी भी।