घर से पहले घर / ब्रजेश कृष्ण
घर बनाते हुए
सामान की देखभाल के लिए मैंने रखा एक मजूर
उसने वहीं कोने में लगाया एक छोटा तिरपाल
नीचे बिछाई थोड़ी-सी पुआल
महज़ तीन थैलों में उठाकर लाई गई गृहस्थी
और पीछे चलती हुई आई उसकी बच्ची और स्त्री
पास से उठाकर ईंटें चार बन गया चूल्हा
थोड़ी-सी सीलन
थोड़ा-सा धुआँ
थोड़ी कठिनाई भी
मगर उठी
आखि़र रोटी की आदिम गंध उठी
स्त्री ने बच्ची और पति को खिलाया
उसके बाद खु़द खाया
सामने के नल पर बर्तन धोये
तिनके की ओट में नहाया
थैले से निकाल कर आईना
कंघी की
बिन्दी रखी
बच्ची को चूमा
और हँसी
मेरा घर बनने से पहले ही बना
वहीं पर बना
अभी-अभी एक पूरा घर।
कितना कम जानता हूँ मैं
मुझे नहीं आती रफू़गिरी
मैं नहीं बना सकता कमीज़ के काज
जूतों की मरम्मत करना तो
नामुमकिन है मेरे लिए
माली मुझसे बहुत ज्यादा जानता है
फूलों के बारे में
जिन्हें मैं कहता हूँ
छोटे-छोटे काम
वे कितने बड़े हैं मेरे लिए!
ऐसे हज़ारों काम हैं दुनियाँ में
जिन्हें मैं करना नहीं जानता
यहाँ तक कि मैं
देखना भी नहीं जानता
सिर्फ देखना
सालिम अली की आँख से
चिड़िया को देखना