भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विद्वान / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:43, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हम वहाँ तीन थे
मैं, वे और वह प्यारा-सा गुलमोहर
इसके पहले कि मैं
दुष्यन्त की ग़ज़ल गुनगुनाता
उन्होंने बताया
कि गुलमोहर
मेडागास्कर का पेड़ है
यह फ्रांस से होता हुआ
हिन्दुस्तान आया
इसकी फै़मिली
प्लाईसियाना रेगिया
इसका फ़ाइलम...
गुलमोहर ने अचानक
मेरी तरफ़ देखा
मैं पहले तो अवाक्
फिर बुदबुदाया
प्रभु! मुझे विद्वानों की
इस बस्ती में
विद्वानों से बचाओ!