भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता भूँजी जाती है / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ शक्ति पूजी जाती है।

उसके ही स्वागत-वंदन में
उसके अर्चन-अभिनंदन में
कविता तो भूँजी जाती है।
यहाँ शक्ति पूजी जाती है।1।

सिंहासन होता सिंहों का
या होता वह नर-सिंहों का
नर की तो बलि दी जाती है।
यहाँ शक्ति पूजी जाती है।2।

यहाँ पुण्य मिलते पापों को
गले लगाते शिव साँपों को
सती अपर्णा रह जाती है।
यहाँ शक्ति पूजी जाती है।3।

राज बनाते राज महल हैं
राज बनाते ताज महल हैं
श्रेय राजाशाही पाती है।
यहाँ शक्ति पूजी जाती है।4।