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भाया या निभाया / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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भाया नहीं बहुत था लेकिन
तुमने मुझको खूब निभाया।
फटी बिवाई देखीं, रोए
नयनों के जल से पग धोए;
लाया था मैं तो तंदुल ही
लेकिन तुमने महल दिलाया।1।
तानसेन का मुकाबला था
मन बैजू बावरा बना था;
गाया, लेकिन हरिण न लौटे
फिर भी तुमने गले लगाया।2।
रोहिताश्व का भी मरघट पर
माँगा मैंने था तुमसे कर;
काया थी गिरवी, तुमने कर
अपना आँचल फाड़ चुकाया।3।
मैंने किया राम-सा दिख कर
वध विश्वास-बालि का छिपकर;
भूला-भटका फिरा, किंतु तुम
ने फिर भी मुझको न भुलाया।4।
मैं न कृष्ण का था मधुबन ही
और न था मैं वृन्दावन ही;
था बाँसों का वन, पर तुमने
अधरों की बाँसुरी बनाया।5।
21.4.85