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ख़ामुशी की सदा सा रहता हूं / ध्रुव गुप्त

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ख़ामुशी की सदा सा रहता हूं
आजकल बेपता सा रहता हूं

उनसे हर रोज़ आंख लड़ती है
ख्व़ाब में ही पड़ा सा रहता हूं

घर मेरे दिल में भी रहा न कभी
घर में मैं भी ज़रा सा रहता हूं

कभी तो आप भी आओगे इधर
रहगुज़र में खड़ा सा रहता हूं

मेरे सज़दे सा तुम रहो मुझमें
मैं तुम्हारी दुआ सा रहता हूं

मेरी तलाश कर सको तो करो
इन दिनों मैं हवा सा रहता हूं