Last modified on 2 जुलाई 2017, at 11:52

कुछ दहशत हर बार ख़रीदा / ध्रुव गुप्त

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:52, 2 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव गुप्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ दहशत हर बार ख़रीदा
जब हमने अख़बार ख़रीदा

जिन्स, भाव, बाज़ार आपके
हमने क्या सरकार ख़रीदा

उसके भीतर भी जंगल था
कल जिसने घर बार ख़रीदा

एक मुश्त में दिल दे आया
टुकड़ा टुकड़ा प्यार ख़रीदा

सच पे सौ सौ परदे डाले
एक सपना बीमार ख़रीदा

हम बेमोल लुटा देते हैं
तुमने जो हर बार ख़रीदा

एक भोली मुस्कान की ख़ातिर
कितना कुछ बेकार ख़रीदा

प्यार से भी हम मर जाते हैं
आपने क्यों हथियार ख़रीदा