भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काबिल के कहल कखनियो न करलक / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 11 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
काबिल के कहल कखनियो न करलक
करलक कहल हमेशा ज्ञान हीन के
सनकी शराब के सवार भेल सीर पर
अपना के शाह बुझलक दीन-हीन के
दीन-हीन दारू पी के दहारै दवंग सन
देह नै सम्हार में बढ़ावै डेग गीन के
भनत विजेता बस एक चूरू दारू लेली
मनुष के तन, मन जल हीन मीन के